फोन और इंटरनेट - आशीर्वाद और अभिशाप ?
फ़ोन और इंटरनेट दोनों ऐसी चीजे है जिसका अगर सही इस्तमाल करना आ जाये तो ये आपको कहा से कहा पहुचा सकता है लेकिन अगर सही ध्यान ना दे तो ये हमारी आदते भी बिगाड सकता हैं।
मेने बचपन से एक बात सीखी है की सिक्के की हमेंसा दो पहलू होती है अगर सिर्फ एक ही पहलू हो तो फिर वो सिक्का किसी काम का नहीं रहता।,
वैसे ही भगवान ने भी हमे ये समझाने के लिए ही दिन-रात ,अच्छा-बुरा और सही-गलत बनाया है। मेरे कहने का सिर्फ यही मतलब है कि जिस चीज का फायदा है उसका नुक्सान भी है.
अगर हम इंटरनेट का सही प्रयोग करें तो हम उसमें क्या कुछ नहीं कर सकते। उसके जरीए हम घर बेठे पैसे कमा सकते हैं, हमारी फैमिली के साथ जुड़े रह सकते हैं। उसके द्वारा हम कहीं सारी अच्छी चीज सिख सकते हैं घर बैठे शिक्षित हो सकते हैं।
आज कल इंटरनेट में कई सारी ऐसी चीज ही जो सिर्फ और सिर्फ हमारा वक्त बर्बाद करती है. जैसे के, फेसबुक, इंस्टा ग्राम, ऑनलाइन खेले जाने वाली गेम्स जो आज कल के बच्चो को जेसे घेरि हुई हे।
मेरा तीन साल का बेटा भी जानता हैं के यू ट्यूब केसे चालू होता है या उसमे विडिओ केसे डाउनलोड कर सकते हैं।
ऐसा नहीं की उसका नुक्सान ही हे उसके फायदे भी हे जब देशमें कोरोना की महामारी चल रही थी तब बच्चे इंटरनेट के जरिए ही पढ़ रहे थे और अपने स्कूल और टीचर के कॉन्टेक्ट मे रह रहे थे. वैसे ही जो लोग अपने वतन से दूर दूसरे शहर में जॉब कर रहे थे वे भी वापिस आके घर से ही अपना काम कर रहे थे .
उस समय में तो इंटरनेट जैसे की हमारे लिए एक आशीर्वाद सामान था.
लेकिन उसके बाद तो जैसे फ़ोन हमारी जिंदगीका अभिन अंग बन चूका है.
हम सोचते हैं कि चलो 5 मिनट फ्री हे फ़ोन देख लेते है. लेकिन वो 5 मिनट कब 30 मिनट हो जाति हे हमें पता ही नहीं चलता। कभी कभी ऐसा लगता है कि जेसे इंटरनेट के ऑक्टोपस ने हमें घेरे रखा है.
उसकी असर हमारी सेहत पर भी होती हे, ना ही तो हम टाइम से खाना खा रहे है , ना ही तो हम टाइम से सो रहें हे .
और तो और अगर हम किसी फेमिली फंक्शन में गए हो तो जैसे सब अपनी- अपनी दुनिया में ही मस्त हे। अपने रिस्तेदारों के साथ बातें करना या उनके साथ बेठ के थोड़ा अच्छा टाइम गुजार ना तो हम भुल ही गए हे। सब बस अपनी लाइफ में ही बिज़ी रहते हे फंक्शन मे जा के रिस्तेदार से बात न हो तो चलेगा पर सेल्फी लेना नहीं भूल सकते .
इसका एक सबसे बड़ा नुक्सान “हम अपने अपनो से दूर होते जा रहे हैं” जाने अंजाने में हमारे अपनो के बीच दुरी बढ़ती जा रही है। कोई भी रिश्ता टाइम मांगता है लेकिन हम हमारा वो टाइम तो फोन के साथ बिताने लगे हे।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे मे तो हमे अवगत कराता ही हे साथ ही साथ देश और दुनिया में क्या चल रहा हे इस की भी जानकारी देता हे पर वो हमे ये बिलकुल नहीं सीखा सकता के हम अपने अपनों के साथ कैसे जुड़े रह सकते है.
इंटरनेट इक दरिया है अगर इस मे तैरना आ जाए तो हम कितना सारा ज्ञान निकाल सकते हे लेकिन अगर न आये तो हम इसमें डूब भी सकते है.
आज कल फोन जैसे हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है। हम कहीं भी जाए इसके बगेर तो हमारा जीवन जेसी अधुरा-अधूरा सा लगता हे।
इसमे कोई बुराइ नहीं हे कि हम फोन का उपयोग करे।लेकिन, ये हमारे लिए एक बुराई ना बन जाए इसका ध्यान सिर्फ और सिर्फ हम ही रख सकते हैं।
इस की वजह से हमारे बच्चे जैसे outdoor games खेलना भुल ही गए है .बस फ्री होते ही फोन लेके बैठ जाते है .
और कही ना कही तो वो हमसे ही ये सारी चीजे सीखते है. हम भी तो ऐसा ही करते है जैसे ही फ्री होते है फोन लेकर बैठ जाते है .
कही ना कही हमे भी हमारी ये आदते बदलनी चाहिए .
जब भी टाइम मिले बच्चो के साथ या तो परिवार के साथ टाइम spend करना चाहिए.
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