हार और जित...

     हार और जित सिक्के की दो पहलु
     अगर जीत हे तो हार भी जरूर हे तो फिर उससे डरना क्यूँ?
     खाश करके आज की पीढ़ी पता नहीं हार का सामना करने से क्यूँ डरती हे। हार वह चीज हे जो आपको अपने आप की काबिलियत जानने में मदद करती हे आप में क्या खूबी हे ये सिर्फ और सिर्फ तब ही पता चलेगा जब किसी भी चीज में आपकी नाकामी होगी और उसके बाद जब आप अपनी तनतोड़ महेनत से उसी चीज में कामयाबी हासिल करेंगे  . 
     पता हे भगवान ने रात के बाद दिन और धुप के बाद छाँव क्यूँ बनायीं हे? क्योकि आप को पता चले के काले घने अँधेरे के बाद दिन के उजाले का क्या महत्त्व हे, आपको पता चले के कड़ी धुप के बाद छाँव कितनी मीठी लगती हे ।सोचो अगर कभी धुप ही ना निकलती या कभी रात का अँधेरा ही ना होता तो क्या आप को छाँव और उजाले की कीमत होती? नहीं, क्योकि ये हम इंसानो की आदत हे जो चीज हमे आसानी से मिल जाती हे उसकी कभी हम कदर ही नहीं करते ।
     वैसे ही अगर हर वक़्त हमे जित ही मिलती तो उस जित की ख़ुशी कभी हम महसूस ही नहीं कर पाते ।
     हार इस जस्ट पार्ट ऑफ़ लाइफ उसको हम इतनी सीरियस्ली क्यों लेते हे।सिर्फ ये सोच कर के सामने वाला व्यक्ति हमारे बारे में क्या सोचेंगा हम इतना दुखी क्यों होते हे?
     दुनिया में ऐसा कोय इंसान नहीं हे जिसने कभी हार न देखि हो ।ये भगवन की बनायी हुयी साइकिल हे जिसमे हमेशा हार और जित के दोनों पहिये होते हे ये साइकिल कभी एक पहिये पर नहीं चलेंगी ।और हम हार का पॉजिटिव पार्ट क्यों नहीं देखते हे? यही सोच कर दुखी हुवा करते हे की में हार गया कभी ये क्यों नहीं सोचा के शायद हमसे ज्यादा सामने वाले को इस जित की जरुरत थी ।
     Sometimes, things don' t go as our planned, because God has better plan for us.
     एक छोटी-सी चिड़िया भी एक-एक तिनका जोड़-जोड़ के अपना घोंसला बनाती हे उसको भी कोय बना बनाया घोंसला नहीं मिलता और उसमे भी ना जाने कितनी बार एक तेज़ हवा का जोका या बारिश उस घोंसले को बर्बाद कर देती हे फिर भी वह हार नहीं मानती और आखिर कार एक दिन वह अपना घोंसला बना ही लेती हे और वह भी इतना मजबूत की ना तो तेज़ हवा और ना ही तो तूफानी बारिश उसे तोड़ सके तो माय डिअर friends इतनी छोटी-सी चिड़िआ हार नहीं मानती तो हम तो इंसान हे हमे तो भगवन ने इतना खूबसूरत शरीर और सोचने के लिए दिमाग दिया हे तो हम क्यों छोटी-छोटी बात पर निराश हो जाते हे.
     आप ने सापसीडी की गेम तो खेलिहि होगी उसमे कितने सारे चढ़ाव उतार आते हे हम कही बार मज़िल के पास पहुंच जाते हे और गलत पासा आते ही वापिस निचे आ जाते हे और वापिस सही पासा आने के बाद आखिर कार  मंज़िल तक पहुंच ही जाते हे .एक छोटा सा गेम भी अंत में तो हमे यही सिखाता हे की ज़िंदगी में न जाने कितने भी चढ़ाव उतार आये लेकिन कड़ी मेहनत के बाद हम अपनी मज़िल तक पहुँच ही सकते हे. 
     ये ज़िन्दगी हे कोय जंग नहीं जिसको हम हर वक़्त हार और जीत के तराजू में तोल ते रहे इसे बस जीना सिख जाओ जीत सामने से आपके कदम चूमेंगी .

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