बचपन
बचपन सच में एक ऐसा एहसास जो उसके बाद ना ही कभी हुवा हे और ना ही शायद कभी होगा हम सबकी ज़िन्दगी का एक ऐसा खूबसूरत सफ़र जहाँ हम चाह कर भी वापस नहीं जा सकते।
हसते-खेलते बचपन कहा खतम हो गया पता ही नहीं चला, वह एक ऐसा दौर था जहा सबकुछ पता होते हुए भी परवाह किसी भी चीज की नहीं थी हम बस हमारी लाइफ में ही मस्त थे।
आज जब मैं इस Generation के बच्चों को देखती हूँ तो सोचती हूँ कि क्या कुछ नहीं हे उनके पास? इंपोर्टेड खिलौने, ब्रांडेड कपड़े महँगे गैजेट्स फिर भी ये बच्चे शायद उस बचपन की ख़ुशी को महसूस ही नहीं कर पाएंगे जो हमने बचपन में की थी।
कितना खूबसूरत बचपन था हमारा।
हमारे पास इतने अच्छे खिलौने नहीं थे लेकिन हम अपने मिट्टी के खिलौनों से ही कितने खुश थे। लेकिन आज सब कुछ कितना बदल गया हे। पता नहीं, इतने महँगे फ़ोन में बात कर के भी वह सुकून नहीं मिलता हे जो बचपन में टूटे हुए पत्थर के बनाये फ़ोन से अपने दोस्तों के साथ झूठी मुठी बातें करके मिलता था और जो मज़ा वह 2 रुपए में 1 घंटे के लिए किराये पर मिलने वाली सायकिल चलाने में आता था वह मज़ा आज की कोय भी महंगी गाड़ी चला कर भी नहीं आता।
आज की ये धूप हमें काला कर देती है लेकिन बचपन में कड़ी धूप में माँ की डाट खा कर भी पैड की ठंडी छाँव के नीचे बैठ कर दोस्तों के साथ जो मजे गप्पे लडाने में थे वह मजे आज के AC वाले कमरों में बड़े-बड़े टीवी पर MOVEI देखने में कहा। अब वह मजे बड़े-बड़े वॉटरपार्क में नहीं मिलते जो कभी हमने बारिस के पानी में कागज़ की कस्ती चला कर और धुबाके लगा कर किये थे।
आज के AC वाले कमरे में भी वह नींद नहीं आती जो गर्मी के मौसम में छत पर सो कर तारे गिनते-गिनते और अपने ग्रैंड पेरेंट से कहानी सुनते-सुनते आ जाती थी। आज तो कहानी की वह जगह भी एनिमेटेड स्टोरीस ने ले ली हे।
वो मजे आज के फेन्सी झूले में नहीं जो मजे हमने बचपन में पेड़ की डाली से टायर बाँध के बनाये झूले में झूल के किये थे और उसमें भी सबकी बारी होतीथी सबके हिस्से में 10-10 झूले लगाना ही आता था और अगर गलती से भी किसी ने एक झूला ज़्यादा लगा लिया तो फिर वह मासूम-सा झगड़ा की अभी हम भी ज़्यादा झूले लगाए गे और वह हमारा केंडल लाइट डिनर जो बिजली चले जाने के बाद मोमबत्ती जला कर हम किया करते थे और बिजली वापिस आ जाने पर ज़ोरो-ज़ोरो से चिलाना।
काश की में मेरे वह खूबसूरत बचपन में वापिस जा सकू।
सच में "वो दिन भी क्या दिन थे"
हम हमारे बचपन में वापिस तो नहीं जा सकते लेकिन अपने बच्चो के साथ उनका बचपन जी कर हमारे बचपन की वह जलक वापिस देख ज़रूर सकते हे।तो चलो उनको हमारे बचपन के किस्से कहानिया सुना कर और उनके साथ हमारे बचपन वाली गेम्स खेल के उन्हें हमारे वाले बचपन में ले के चले। उनहे भी समझाये की ये जो समय हे वह वापिस नहीं आने वाला हे तो ये गेजेट्स और फ़ोन को छोड़ के अपने इस समय को एन्जॉय कर।
So my friends... चलो।
बच्चों के संग बच्चे फिर बन जाये
मौज में जुमे ज़रा मस्ती करे।
I Hope की मेरा ये छोटा-सा प्रयास आप सबको अपने बचपन में ज़रूर ले गया होंगा और आप सबके चेहरे पर एक प्यारी-सी मुस्कान ज़रूर लाया होगा। बस एक ही Request हे की अगर थोड़ा-सा भी वक़्त मिले अपनी इस अति व्यस्त लाइफ में से तो उस खूबसूरत दिन को दोबारा जीने के प्रयास ज़रूर करना।
हम सब के बचपन की एक छोटी सी जलक।
एक छोटी सी Request हे मुझे कमेंट में बताना ज़रूर के किस-किस को ये ब्लॉग पढ़ कर अपने बचपन की याद आ गयी।
Comments
टूटे सपनों और अधूरी भावनाओं से,
अधूरा होमवर्क और टूटे खिलौने बेहतर थे...
👌👌👌
Good writing 👌